The Night Bus...
by Omkar Mangesh Datt / 10 December 2016
नीलकंठ बड़ा गुस्से में था.. माहिम ‘बी. इ. एस. टी.’ डिपो के इंचार्ज पर उसका गुस्सा निकल रहा था.. बात ही कुछ ऐसी थी.. उसे डिपो से छूटने वाली नाइट बस की ड्यूटी दी जा रही थी.. कभी न सोने वाली इस मुम्बई के लिए बी. इ. एस. टी. कुछ बसे चलाती है.. नाइट बस.. इस बस में हमेशा एक अजीब सी उदासी छाइ रहती है.. लोग हमेशा ही थकेहारे रहते है.. कुछ आँखें बंद कर नींद में.. तो कुछ खुली आँखों से बाहर के अंधेरे में खोए हुए.. ज्यादातर शराब पिए हुए.. कभी कभी पीकर बस में उलटी करने वाले भी.. इन बसों में कोई कंडक्टर काम करना नहीं चाहता.. और इसी बात को लेकर नीलकंठ और इंचार्ज में बहस छिड़ गयी थी.. ‘नीलकंठ की शादी हुई नहीं है इसलिए उसे ये ड्यूटी दी गई है’ ऐसा कह कर इंचार्जने नीलकंठ के दुखती रग दबा दी.. ‘अगर कुछ होता है तो जल्द ही देखता हूँ’ ऐसा कह कर इंचार्ज ने नीलकंठ के बचे हुए जोश पर भी पानी फेर दिया और उसे बाहर का रास्ता दिखाया.. बीचारे नीलकंठ के पास ड्यूटी करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था..
बस अपने सही समय पर चल रही थी.. रात के २ बजे थे.. नीलकंठ कुछ गुस्से और नाराज़गी में अपना काम कर रहा था.. काम क्या था? कुछ लोग जो बैठे थे उनके टिकट वो कब के निकाल चुका था.. आधे से ज्यादा बस खाली थी और जो लोक बस में बैठे थे वो किसी लाश से कम नहीं लग रहे थे.. किसी शादी से देर रात लौट रहा पांच लोगों का एक परिवार एक तरफ बड़े भड़किले कपड़ों में सजाधजा बैठा सो रहा था.. कुछ कॉलेज के बच्चे पता नहीं कहाँ से आ रहे थे.. दो बेवड़े बस के सबसे पिछली सीट पर सो रहे थे.. इतने गहरी नींद में के उनके ख़र्राटों की आवाज़ पुरी बस में गूंज रही थी.. एक बेवड़ा दाये तरफ की तीसरी सीट पर बैठा किसी को मोबाइल पर जिंदगी का ज्ञान दे रहा था.. और नीलकंठ असहाय हो सोच रहा था के वो कहाँ आ फँसा है.. ऐसा ही कुछ दिनों तक चलता रहा तो शायद वो नौकरी छोड़ दे.. या क्या पता ऐसी जिंदगी से तंग आकर वो ख़ुदकुशी ही कर दे..
नीलकंठ ऐसी बेतुकी बाते सोच रहा था तभी रामविलासने (जो की बस का ड्रायव्हर था ) बस अगले स्टॉप पर रोक दी.. शायद कोई बस स्टॉप पर खड़ा होगा वरना रामविलास बस रोकता नहीं.. अब नींद की खाई में खोए किस निशाचर से पाला पड़ने वाला है ये नीलकंठ सोच ही रहा था, तभी बस के माहौलमें एक भीनी भीनी सी खुशबु भर सी गयी.. बस के पिछले दरवाजे की पायदान पर किसी के पैरो की आवाज हुई.. नीलकंठ देख रहा था और ‘वो’ पिछले दरवाजे से बस के अदंर दाखिल हुई.. मानो इस उदास और खाली से बस में करंटसा दौड़ गया.. हलके गुलाबी रंग की साड़ी उसने बड़े तरीके से पहनी हुई थी.. कोहनी तक बाहोंवाला गहरे नीले रंग का ब्लाउज, एक हाथ में चार सुनहरे नाजुक से कंगन, दूसरे हाथ में घड़ी, लंबे बालों की हलकी बाँधी हुई एक चोटी और उसमें एक गजरा.. वो आकर महिलाओं के लिए आरक्षित सीट पर बैठ गयी.. नीलकंठ उसके पास गया.. बड़ी मीठी आवाज में उसने सिर्फ दो लव्ज़ कहे.. ‘लास्ट स्टॉप..’
उस दिन के बाद ये सिलसिला रोज का हो गया.. वो उसी समय उसी स्टॉप पर नीलकंठ के बस में चढ़ती और लास्ट स्टॉप के पहले, एक स्टॉप पर उतर जाया करती थी.. नीलकंठ उस उदासी भरी बस में उसे निहारता, मानो वो जीवन का स्त्रोत हो.. उसके अकेली जिंदगी में जीने का कारण.. धीरे धीरे नीलकंठ उससे प्यार करने लगा.. एक रात तो उसने बखेड़ा ही खड़ा कर दिया.. हमेशा के समय पर उस लड़की ने बस नहीं पकड़ी तो उसने पांच मिनिट तक बस उस स्टॉप पर रोक कर रखी थी.. लड़की दौड़ते हुए आयी तब जाकर कहीं नीलकंठ के जान में जान आयी.. इस किस्से के बाद तो ये एक खुला राज था के नीलकंठ उस लकडीसे प्यार करने लगा है.. ‘उसे’ नीलकंठ के दिल में क्या चल रहा है इसका कुछ कुछ अहसास हो गया.. पर उन दोनों ने ही पहल नहीं की और जैसा चल रहा था वैसे ही सब चलता रहा..
नीलकंठ अब रोज ख़ुशी ख़ुशी इस नाइट बस के ड्यूटी के लिए जाने लगा था.. ऐसी ही एक शाम वो ख़ुशी से डिपो में आया और अपने ड्यूटी के लिए रेडी होने लगा तभी उसे डीपो इंचार्ज ने बुला लिया.. बात ही कुछ ऐसी थी.. उसकी ड्यूटी बदल दी गयी थी.. अब उसे नाइट बस के ड्यूटी पर जाने की कोई जरूरत नहीं थी.. ये सुनकर नीलकंठ का चेहरे की सारी रौनक झट से गायब हो गयी... इंचार्ज को भी ये बात जरा अजीब ही लगी..
‘तुम्ही ने तो डिमांड की थी.. ड्यूटी बदलने के लिए..’
‘सच बताए तो.. अब हमे यहीं ड्यूटी चाहिए है.. नाइट बस वाली..’
नीलकंठ ने उसे समझाने की बड़ी कोशिश की पर उसने कह दिया के अब वो कुछ नहीं कर सकता और ये ड्यूटी अब एक महीने तक उसके लिए असाइन नहीं की जा सकती.. नीलकंठ का मानो हर सपना टूट गया..
उस रात जब ‘वो’ बस में चढ़ी तो उसकी भी हालत कुछ ऐसी ही हुई.. नीलकंठ के जगह बस कंडक्टर कोई और ही था.. नए कंडक्टर को देखकर उसके चहरे की हंसी कहीं खो गयी.. उसने टिकट लिया और वो जाकर अपनी जगह पर बैठ गयी.. तभी उसकी नजर पड़ोस की सीट पर गयी, जहां कोई बैठा हुआ, उसे देख कर हंस रहा था.. वो नीलकंठ था.. ड्यूटी नही तो क्या, बतौर पैसेंजर तो आ ही सकता था वो.. अब ये एक नया सिलसिला कुछ दिन तक चला.. रोज रात को नीलकंठ बस में बतौर सवारी सफर करता.. सब अच्छे से गुजर रहा था.. पर..
देर रात अपनी ड्यूटी ख़त्म कर के नीलकंठ डिपो के चेंजिंग रूम में तैयार हो रहा था.. अब उसे नाइट बस पर बतौर पैसेंजर जाना था.. वो अपने ही धुन में था.. तभी पीछे से उसे रामविलास की आवाज सुनाई दी..
‘आज तो बात आगे बढाओ..’
उसने मुड़कर देखा.. रामविलास भी बतौर ड्राईव्हर नाइट बस पर निकलने के लिए रेडी हो रहा था..
‘पुरे डिपो में तुम्हारे रात के चक्कर के चर्चे चल रहे है नीलकंठ.. ’
नीलकंठ उसकी बात सुनकर शरमा गया.. रामविलास अपने कपड़े लॉकर में रखते हुए उसके नजदीक आया और धीमी आवाज में बोला..
‘देखो.. ज्यादा मांग रही हो तो भी पीछे मत हटना.. मैं उधार दे दूंगा तुम्हे..’
नीलकंठ उसकी बात सुनकर गड़बड़ा गया..
‘हमने भी शादी से पहले इस ड्यूटी में कई सारे काण्ड किये है.. दिखने में महंगी लगती है पर..’
उसकी बात खत्म होने से पहले नीलकंठ ने उसकी कॉलर पकड़ ली.. वो बेहद गुस्से में था..
‘कहना क्या चाहते हो.. वो क्या ऐसी वैसी लड़की लगती है..’
गुस्से में उसने रामविलास को एक गाली भी जड़ दी वैसे रामविलास ने उसे दूर हटाया..
‘इतने रात गए अकेली औरत सज धज कर घूमती है वो क्या सति सावित्री होगी.. आँखे खोलो और देखो.. २ बजे बस में बैठती है.. कौनसा जॉब छूटता है दो बजे.. मुझे लग रहा था जवानी की आग है.. बुझा लोगे.. पर तुम तो ऐसी औरत के साथ घर बसाने की सोचने लगे..’
रामविलास उसे एक गाली देकर वहां से निकल गया.. नीलकंठ उधर ही बूथ बने खड़ा था.. रामविलास की बात सच थी क्या?
उस रात जब ‘वो’ बस में चढ़ी तो नीलकंठ नहीं था.. कंडक्टर, पैसेंजर - किसी भी रूप में.. उसे कुछ मिसिंगसा लगा.. उसका स्टॉप आया वैसे वो बस से उतर गयी.. वो टॉक्सी खोजने के लिए आगे बढ़ी.. तभी दीवार के पीछे से कोई बाहर निकला.. वो नीलकंठ था.. वो उसी का इंतजार कर रहा था.. नीलकंठ उसके पीछे निकला.. आगे जाकर ‘उसने’ टैक्सी पकड़ ली.. नीलकंठ ने भी एक टैक्सी पकड़ कर उसका पीछा करने के लिए कहाँ.. मुंबई के कई अँधेरे गलियों में उसके टैक्सी का पीछा करते हुए नीलकंठ बेहद बेचैन हो रहा था.. रामविलास की बात सच हो गयी तो?
टैक्सी जब रुकी तब नीलकंठ होश में आया.. उसे अपनी आँखों पर भरोसाही नहीं हो रहा था.. जिस गली में वो आया था वो गली रौशनी से भरी हुई थी.. लोगों की चहल पहल थी.. ये मुम्बई तो सच में जाग रही थी.. मानो किसी बात का जश्न मना रही थी.. वो बिल चुकता कर के टैक्सी से उतरा.. सामने ‘उस'की टैक्सी थी पर वो उतर कर कहीं चली गयी थी.. नीलकंठ को उसे खोजना था.. वो इधर उधर देखने लगा.. गली के दोनों तरफ पुरानी चॉल जैसी इमारते थी.. कुछ छोटे छोटे घर थे.. इमारतों की खुली बालकनियोंमें कई औरते खड़ी थी.. रास्तो पर घूम रहे कुछ लोग उसके नजदीक आकर दबी आवाज में पूछ रहे थे.. ‘एकदम मस्त माल है.. चाहिए क्या?’ उसे यकीन नहीं हो रहा था.. ‘वो’ सच में उसे एक रेड लाइट एरिया में लेकर आ गयी थी.. जहां देखो वहां कई चेहरे भड़कीला मेकप किये - सजेधजे उसे बुला रहे थे.. कुछ मर्द उन घरों में जा रहे थे.. दवाज़े बंद हो रहे थे.. अंदर से कई प्रकार की आवाजे आ रही थी..
उसका सर चकराने लगा.. आँखे नम हो गयी.. वो लड़खड़ाया.. मानो उसके पैरों में ताकद ही नहीं बची हो.. बगल में एक चाय का ठेला था.. वो वहां जाकर बैठ गया.. किसी ने उसे पानी पिलाया.. उसके आंसू बह निकले.. क्या सोचा था और ये क्या हो गया.. किसी ने उसके सामने चाय का प्याला रखा.. उसके बगल में आकर बैठ गया.. १४ - १५ साल का एक लड़का था..
‘इन लौंडियों से कभी दिल नहीं लगाने का साहब.. धोका दे दिया ना..’
नीलकंठ को क्या बोले समझ नहीं आ रहा था.. मानो ये लड़का उसके हालात बयान कर रहा था..
‘छोड़ो.. अपुन के पास एक से एक लडकिया है.. एक बार फोटो देख लो.. मजा आ जाएगा..’
वो फोन निकालने लगा.. उतने में नीलकंठ उठ कर वहां से निकल भागा.. उसे खुद पर ही घिन आ रही थी.. एक लड़की ने उसे कहाँ लाकर खड़ा कर दिया था.. उसे उस लड़की पर बेहद गुस्सा आ रहा था.. अभी वो सामने होती तो पता नहीं वो क्या कर देता..
ये सब सोचते हुए वो गली से बाहर ही निकल रहा था तभी उसे कुछ नजर आया.. एक छोटीसी झुग्गी के बाहर मरून रंग की चप्पले.. नीलकंठ उन्हें कुछ समय तक देखता रहा.. ये उसी की चप्पले थी.. नीलकंठ उन्हें पहचानता था.. नीलकंठ का गुस्सा फिरसे उबल पडा.. उसकी सोच जैसे बंद सी पड़ गयी थी.. उसने दरवाजा धकेला.. वो खुला ही था.. अंदर कोई नहीं था.. कमरे के एक तरफ एक पर्दा लगा हुआ था.. उसके पार से रौशनी नजर आ रही थी.. हंसी की हलकी आवाज भी आ रही थी.. ये ‘उसी’ की आवाज थी.. पता नहीं किस मर्द के बाहों में वो इस समय होगी.. नीलकंठ गुस्से में कमरे की ओर बढा और उसने झटके से पर्दा खोल दिया.. अंदर जो चल रहा था उसे देख नीलकंठ हड़बड़ा गया..
वो अंदर एक दीवार के पास खड़ी थी.. जिसके बगल में एक छोटासा ब्लैक बोर्ड लगा हुआ था.. सामने कुछ बच्चे बैठे थे.. वो उन्हें पढा रही थी.. वो अचानक नीलकंठ के ऐसे आने से हड़बड़ाकर देखने लगी.. नीलकंठ को क्या बोले समझ नहीं आ रहा था.. उसे अब खुद पर ही शर्म आ रही थी.. वो वहां से मुड़ा और तेज रफ़्तार से बाहर निकल गया..
सुबह हो रही थी.. ‘वो’ आकर उसी बस स्टॉप पर रुकी जहां वो उतरा करती थी.. नीलकंठ उसका वहीँ इन्तजार कर रहा था.. उसे देखते ही नीलकंठ ने नजर झुकाई.. वो आकर उसके बगल में कुछ दुरी बनाए खड़ी रही.. नीलकंठ ने उसे देखा और हलकी आवाज में ‘सॉरी’ कहाँ..
‘वो मुझे ऐसे... ऐसे आना नहीं..’
उसकी बात बीचमें काटते हुए ‘वो’ बोली..
‘मेरा नाम दिव्या है.. शायद तुम कभी नहिं पूछते..’
नीलकंठ ने हड़बड़ा कर उसे देखा.. दिव्या मुस्कुरा रही थी.. नीलकंठ ने हिम्मत जुटाई और जेब से कुछ निकाल कर उसे दिया.. वो गजरा था.. वैसा ही जैसे ‘वो’ पहना करती थी.. उसने नीलकंठ के हाथ से गजरा लेकर पहन लिया.. तभी उसकी बस आ गयी.. आगे बढ़ कर वो बस में चढ़ने लगी.. नीलकंठ पीछे ही रुका था.. उसे समझ नहीं आ रहा था के क्या करे.. तभी दिव्याने मुड़कर उसे देखा और मुस्कुरायी.. नीलकंठ भी उसके पीछे पीछे बस में चढ़ गया.. बस चल पड़ी.. दूर दूर जाने लगी.. सुबह हो चुकी थी..